इदरीस बाबर के अशरे

एक सेकंड में

 

बुझ सकते है तेरह जुगनू

जल सकते हैं सात सितारे

गिर सकती हैं पांच चटानें

मिल सकते हैं दो अजनबी

खिल सकता है इक फूल

चल सकती हैं तीन गोलियां

रुक सकता है एक दिल

दब सकता है एक बटन

ग़ायब हो सकता है एक शहर

हाज़िर हो सकती है एक नज़्म

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तंदूर पर सर्दी का अंदाजा

 

किचन की मेज़ पर इक चाय की प्याली रखी है

उसी के साथ चेनक (टूटने वाली) रखी है

हरे सोफ़े पे कुत्ता सा कोई सुकड़ा पड़ा है

क़रीब इक बाथ टब में धूप का टुकड़ा पड़ा है

परे कुर्सी पे ‘बर बर’ कांपती बिल्ली धरी है

पुराने नादिरों के वास्ते दिल्ली धरी है

भरी अलमारी से दिल भर ख़ला तो ढूंढ लायें

दराजें दर्जें तक झाँकीं खुदा को ढूंढ लायें

यह मंज़र…..सोच कर……..दोनों ने अंदाज़ा लगाया

तो मैंने अशरा……उसने नान इक ताज़ा लगाया

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बे क़ुसूर

 

बच्चे बैंकॉक में भी रुलते हैं

जिस्म न्यू-यॉर्क में भी तुलते हैं

क़त्ल वेनिस में इतने होते हैं

रेप पेरिस में जितने होते हैं

दो सो चौरासी कितने होते हैं

डेढ़ दो लाख तो हुज़ूर नहीं

जो हुआ सब ख़ुदा की मर्ज़ी थी

क्या करे जब ख़ुदा की मर्ज़ी थी

और ख़ुदा डेरे से तो दूर नहीं

याँ किसी का कोई क़ुसूर नहीं

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एक मोहब्बत के अतराफ़ में

 

रात भर जैसे शहर ख़ाली था

चारों जानिब उमड़ती राहें थीं

दम-ब-ख़ुद इंतज़ार गाहें थी

वही उसकी कुशादा बाहें थीं

और यही दिल से तंग सीना था

ज़ीना था जो ख़ुशी से झूमता था

पस्त होटल के बाला-ख़ाने में

मैं किसी और ही ज़माने में

उसको बा-इख़्तियार चूमता था

अपने बारह हज़ार…चूमता था

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एक मोहब्बत के अतराफ़ में 2

 

अब जो रह रह के कॉल करते हो

मेरा अपना सा हाल करते हो

इस जगह था /यहीं /हबीब के साथ

उस जगह हूँ /वहीं /रक़ीब के साथ

सात परसेंट है बेटरी बाक़ी

चार सतरें हैं नज़्म की बाक़ी

दुश्मनी दोस्ती से जुड़ती हुई

शायरी ज़िन्दगी से जुड़ती हुई

बस कहानी यहीं से मुड़ती हुई

कासा-ब्लांका में रेत उड़ती हुई

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टिकट

 

तुम मेरे पास तो नहीं फिर भी

फ़ोन के दूसरी तरफ़ होगी

जैसे इक आसमान चारों तरफ़

तुम हो मेरे लिए हजारों तरफ़

यही होता है कॉल का मक़सद

अन कहे एक सवाल का मक़सद

मिलना चाहो तो आँखें बंद करो

और …लाहौर का टिकट ले लो

उंगलियाँ छूनी ….हाथ थामने हैं

और….हम इक दूसरे के सामने हैं

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मैंने हुक्मइलाही की तामील की

 

सिर्फ़ इतना किया मैं ने बेटे के साथ

बांधे कस कस के नौख़ेज़ पैर और हाथ

सात साला गले पर छुरी फेर दी

सज्दा-ए-शुक्र में ….आन जकड़ा मुझे

नूर बावे के शोहदों ने पकड़ा मुझे

कांस्टेबल ने मारा छुरी छीन ली

केस अदालत में रुलता रहा पांच साल

लाख भौंका थी मर्ज़ी ख़ुदा की यही

ज़ुल्म देखो मुझी को सज़ा हो गई

जेल में प्यारे का नाम …..झूठा नबी

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सिगरेट नोशी

 

राख की झोंपड़ी…..मेरा हर सांस है…..सिल सी है सीने में

दिल नहीं जीने पर…..न कोई चांस है…..राख की झोंपड़ी

बर्फ़ की चिलमनी…..सर से पा तक बदन…..मैं था ख़ुद में मगन

तन का धन मन का फ़न…..बर्फ़ की चिलमनी…..बर्फ़ की चिलमनी

सैर पर निकले बच्चों की मानिंद आज़ादाना क्यों…..साँस चलती नहीं

लाइटर मर मिटे माचिसें गल सड़ें…..कोई उम्मीद की शम’अ जलती नहीं

दूर तक धुंध है बाहर अन्दर धुँआ…..मलगजा, धुंधला धुंधवाँ

मैं हंसा रो दिया मैंने जो खो दिया…..क्या तेरे पास है

अब भी मेरे लिए क्या कोई चांस है…..क्या कोई आस है

बर्फ़ की बेख़ुदी…..राख की रागनी…..ज़िन्दगी ज़िन्दगी

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एक दलित अशरा

 

हम ऐसे लोग हम सब फ़ानी इंसान

भरेंगे कब तलक चिलमें तुम्हारी

तुम्हारे वास्ते बे माना इन्सान

पढ़ें लिक्खें तो आगे जॉब ही नइं

वह आँखें क्या कि जिनमें ख़्वाब ही नइं

ये झूठे वादे जाली जम्हूरियत

यह जिम-ख़ानों की पाली जम्हूरियत

चलेंगी कब तलक फ़िल्में तुम्हारी

वज़ीर ऐलान जारी कर रहे हैं

मदर इंडिया के बेटे मर रहे हैं

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आसमानों पर

 

हो जाते हैं पैदा

पल बढ़ जाते हैं

लिख पढ़ लेते हैं

किसी न किसी तरह

ले बैठते हैं इश्क़

हो रहते हैं नाकाम

कर जाते हैं डिग्री

किसी न किसी तरह

ढूंढ लेते हैं जॉब

बन बैठते हैं जोड़े

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मीटिंग

 

उसने मीटिंग बुलाई और कहा

लोग दिन रात कंट्रोल में हैं

टेप मुंह पर लगाई और कहा

सब बयानात कंट्रोल में हैं

उसने गोली चलाई और कहा

सर जी हालात कंट्रोल में है

सब ज़मीं पर ख़ुदा के नायब थे

सब ज़मीं पर ख़ुदा के नायब हैं

वो जो अपनी रज़ा से मारे गए

वो जो अपनी ख़ुशी से ग़ायब हैं

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आज़ादी नंबर 2

 

किसके पल्ले लीडरों की अंग्रेज़ी पड़ी थी

गिने चुनों को अपनी अपनी तेज़ी पड़ी थी

नव्वे फ़ीसद देश जब उनके लिए जाहिल था

वोट का हक़ फिर कितने फ़ीसद को हासिल था

कैसे समझा जाए सब पर सब वाज़ेह था

नाम-निहाद आज़ादी का मतलब वाज़ेह था

ताज के बार्दों राज के परवरदों के अलावा

कौन सा भारी मेंडेट जिसने वोट दिया था

इस तक़सीम के हक़ में किसने वोट दिया था

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अशरा दस पंक्तियों की एक नज़्म को कहा जा सकता है, इसे उर्दू के मशहूर शायर इदरीस बाबर ने लिखना शुरू किया है, ये दस पंक्तियाँ किसी ख़ास बहर में भी हो सकती हैं, अलग अलग बहरों में भी और बग़ैर किसी बहर के भी इन्हें लिखा जा सकता है, इसके साथ ही साथ एक अशरा रोमानी भी हो सकता है, सियासी या समाजी भी. उसमें बहुत कुछ समेटा जा सकता है. इदरीस बाबर की किताब अशरे‘ 2022 में प्रकाशित हुई और उन्हीं की बदौलत अब नज़्म की ये नई विधा उर्दू के दूसरे शायरों के यहाँ भी तेज़ी से अपने लिए जगह बनाती जा रही है. इदरीस बाबर पाकिस्तानी पंजाब के शहर गुजरांवाला से तअल्लुक़ रखते हैं. उनकी ग़ज़लों का एक मजमूआ यूँहीके नाम से प्रकाशित हो चुका है.