झूठी कहानी
अस्र का वक़्त है या शायद उस के कुछ बाद का। मग़रिब…
अवाइल–ए–बहार का इज़्तिराब बारिश से भीगे रस्ते परजहाँ चेरी के शगूफ़ेपत्ती-पत्ती…
रौशनी वोमुझ पर अयाँ हैरौशनी की धार की मानिंदउस नेअपनी धार सेमुझेटुकड़े-टुकड़े…
अस्र का वक़्त है या शायद उस के कुछ बाद का। मग़रिब तक मुझे घर पहुँच जाना चाहिये। “पहुँच जाउंगी” इर्द-गिर्द देखते हुए मैं एतिमाद
अवाइल–ए–बहार का इज़्तिराब बारिश से भीगे रस्ते परजहाँ चेरी के शगूफ़ेपत्ती-पत्ती बिखर गए हैंमैं अपने आप में गुम चलता हूँइर्द-गिर्दतितलियों की परवाज़ में तुम्हारी
उस की पैदाइश वक़्त से पहले हुई। दाई ने ला कर बाप की गोद में डाला तो उस के ना-मुकम्मल हाथ-पाँव का बता दिया। बाप