कनीज़
सिविल लाइंस की सबसे कुशादा और सबसे ख़ूबसूरत सड़क पर मील डेढ़…
अवाइल–ए–बहार का इज़्तिराब बारिश से भीगे रस्ते परजहाँ चेरी के शगूफ़ेपत्ती-पत्ती…
रौशनी वोमुझ पर अयाँ हैरौशनी की धार की मानिंदउस नेअपनी धार सेमुझेटुकड़े-टुकड़े…
सिविल लाइंस की सबसे कुशादा और सबसे ख़ूबसूरत सड़क पर मील डेढ़ मील की मुसाफ़त से थकी हुई कनीज़ और उनकी दादी सटर-पटर जूतियाँ घिसटती
जनवरी की एक शाम को एक ख़ुश-पोश नौजवान डेविस रोड से गुज़र कर माल रोड पर पहुँचा और चेरिंग क्रास का रुख़ कर के ख़िरामाँ-ख़िरामाँ
अस्र का वक़्त है या शायद उस के कुछ बाद का। मग़रिब तक मुझे घर पहुँच जाना चाहिये। “पहुँच जाउंगी” इर्द-गिर्द देखते हुए मैं एतिमाद