भरे बाज़ार में

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कोई चीज़ रख्खी के पेट पर फड़ से गिरी। रख्खी कुनमुनाई और…

एक पेड़ का क़त्ल

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एक क्वार्टर के बग़ल में एक बहुत ही ऊँचा, मज़बूत, घना और…

कनीज़

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सिविल लाइंस की सबसे कुशादा और सबसे ख़ूबसूरत सड़क पर मील डेढ़…

ओवरकोट

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जनवरी की एक शाम को एक ख़ुश-पोश नौजवान डेविस रोड से गुज़र…

झूठी कहानी

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अस्र का वक़्त है या शायद उस के कुछ बाद का। मग़रिब…

हुसैन आबिद की नज़्में

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अवाइल–ए–बहार का इज़्तिराब   बारिश से भीगे रस्ते परजहाँ चेरी के शगूफ़ेपत्ती-पत्ती…

कच्चा

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उस की पैदाइश वक़्त से पहले हुई। दाई ने ला कर बाप…

अहमद आज़ाद की नज़्में

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किताब-उन-नफ़्स में लिखी गई नज़्म   चकरा कर गिरता है आदमी आईने…

मिशन डम डम

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आलू और कद्दू सवेरे-सवेरे आ गए। मैं छत पर सो रहा था।…

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भरे बाज़ार में

कोई चीज़ रख्खी के पेट पर फड़ से गिरी। रख्खी कुनमुनाई और आँखें खोलने की कोशिश करने लगी। फिर एक ज़्यादा वज़नी चीज़ आकर छाती

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एक पेड़ का क़त्ल

एक क्वार्टर के बग़ल में एक बहुत ही ऊँचा, मज़बूत, घना और सुंदर पेड़ था। शहर के मशहूर बाग़ को बड़े बेढंगे तरीक़े से काट-काटकर

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कनीज़

सिविल लाइंस की सबसे कुशादा और सबसे ख़ूबसूरत सड़क पर मील डेढ़ मील की मुसाफ़त से थकी हुई कनीज़ और उनकी दादी सटर-पटर जूतियाँ घिसटती

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